Who is Sanjay Yadav : बिहार चुनाव के नतीजे घोषित हो चुके हैं। राजद को सिर्फ़ 25 विधानसभा सीटें मिलीं। मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे तेजस्वी को करारी हार का सामना करने के बाद अब पाँच साल और इंतज़ार करना होगा। लालू परिवार इस हार के सदमे से उबरा भी नहीं था कि उन्हें एक और झटका लगा है। लालू यादव को 2022 में किडनी दान करने वाली उनकी दूसरी बेटी रोहिणी आचार्य ने परिवार से सारे रिश्ते तोड़ लिए हैं। इससे पहले तेज प्रताप भी परिवार से अलग हो गए थे। अब सवाल उठता है कि इस पारिवारिक कलह का ज़िम्मेदार कौन है? रोहिणी और तेज प्रताप इस सवाल का जवाब पहले ही दे चुके हैं।
घर से निकलने से पहले रोहिणी ने दो लोगों पर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि संजय यादव और रमीज़ ने खुद उन्हें घर से निकलने को कहा था, इसलिए वह ऐसा कर रही हैं। इससे पहले उन्होंने संजय यादव पर तब भी आपत्ति जताई थी जब वह तेजस्वी की ‘बिहार अधिकार यात्रा’ बस में आगे की सीट पर बैठे थे।
तेज प्रताप ने कहा था ‘जयचंद’ :
तेज प्रताप का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। वीडियो में तेज प्रताप एक हवाई अड्डे पर इंटरव्यू दे रहे थे। तेजस्वी का हेलीकॉप्टर पास ही उड़ रहा था। तभी इंटरव्यू लेने वाले ने कहा, “देखो, तेजस्वी जा रहे हैं।” तेज प्रताप ने जवाब दिया, “हाँ, वो ‘जयचंद’ उनके बगल में बैठा है।” माना जा रहा है कि तेज प्रताप तेजस्वी के बगल में बैठे संजय यादव की ओर इशारा कर रहे थे।
अब सवाल उठता है: ये संजय यादव कौन हैं? तेजस्वी उन पर इतना भरोसा क्यों करते हैं? हरियाणा का एक निजी कंपनी में काम करने वाला शख्स बिहार की राजनीति में कैसे शामिल हो गया? बिहार के सबसे मज़बूत राजनीतिक परिवार में उनका इतना प्रभाव था कि सबसे बड़े बेटे और दूसरी बेटी को भी अपना घर छोड़ना पड़ा।
संजय यादव कौन हैं?
संजय यादव हरियाणा के महेंद्रगढ़ के रहने वाले हैं और तेजस्वी यादव के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकारों में से एक माने जाते हैं। उनकी शिक्षा भी अच्छी है। उन्होंने कंप्यूटर साइंस में एमएससी और एमबीए किया है। कहा जाता है कि उन्हें प्रबंधन, डेटा विश्लेषण और रणनीति विकास में गहरी समझ है। राजनीति में आने से पहले, उन्होंने एक निजी कंपनी में काम किया, लेकिन तेजस्वी से जुड़ने के बाद, उनकी भूमिका पूरी तरह से राजनीतिक रणनीति में बदल गई। अपने हरियाणवी लहजे के साथ संजय आज बिहार की राजनीति पर किसी भी वरिष्ठ नेता से कम नहीं, बल्कि मज़बूत पकड़ रखते हैं। 2024 में, राजद ने उन्हें राज्यसभा भी भेजा, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि संगठन में उनका स्थान शीर्ष स्तर पर है।
तेजस्वी को संजय पर इतना भरोसा क्यों ?
तेजस्वी यादव को संजय यादव पर गहरा भरोसा है क्योंकि वे न केवल सलाहकार हैं, बल्कि रणनीतिकार, प्रबंधक और संकटमोचक की भूमिका भी निभाते हैं। संजय यादव आंकड़ों से प्रेरित रणनीतियों के विशेषज्ञ हैं। तेजस्वी के हर बड़े राजनीतिक फैसले के पीछे उनका योगदान माना जाता है। संजय यादव ने 2015 से 2025 तक हर बड़े चुनाव में अहम भूमिका निभाई है। कहा जाता है कि उन्हें तेजस्वी की कार्यशैली, चुनावी गणित, सोशल मीडिया प्रबंधन और कोर टीम की ज़रूरतों की गहरी समझ है। संजय को तेजस्वी का “दाहिना हाथ” कहा जाता है क्योंकि वे विश्वसनीयता, गोपनीयता और निर्णायक रणनीति के प्रतीक हैं।
तेजस्वी से उनकी मुलाकात कहाँ हुई?
संजय यादव और तेजस्वी यादव की पहली मुलाकात दिल्ली में हुई थी। कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि उनकी दोस्ती उनके क्रिकेट के दिनों में शुरू हुई थी, जब तेजस्वी एक क्रिकेटर थे और दिल्ली में रहते थे। समय के साथ यह अनौपचारिक रिश्ता और मज़बूत होता गया। 2012 के बाद, तेजस्वी राजनीतिक मुद्दों पर संजय से सलाह लेने लगे। धीरे-धीरे यह रिश्ता एक पेशेवर साझेदारी में बदल गया। तेजस्वी की ज़रूरतों और चुनावी रणनीति की समझ को समझते हुए, संजय ने अपनी निजी नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से राजनीति में आ गए। दिल्ली में शुरू हुई यह दोस्ती आगे चलकर राजद की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक साझेदारियों में से एक बन गई।
राजद में संजय का कद क्या है?
राजद में संजय यादव का कद अब सिर्फ़ एक रणनीतिकार का नहीं, बल्कि शीर्ष नेतृत्व के एक भरोसेमंद फ़ैसले लेने वाले का है। उन्हें तेजस्वी यादव का सबसे भरोसेमंद सलाहकार माना जाता है, जिनकी राय संगठन की नीतियों, चुनाव अभियानों और गठबंधन की बातचीत को सीधे प्रभावित करती है। 2024 में राज्यसभा भेजे जाने के बाद उनकी स्थिति और मज़बूत हुई है। यह पद पार्टी में उनके महत्व का प्रतीक है। संजय राजद की युवा कोर टीम, सोशल मीडिया सेल, चुनाव प्रबंधन और संसदीय रणनीतियों में बेहद प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं। उन्हें पर्दे के पीछे से पार्टी चलाने वाले सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक माना जाता है।
टिकट वितरण में उनका कितना हस्तक्षेप था?
इस चुनाव में टिकट वितरण में संजय यादव की भूमिका काफी चर्चा में रही। पार्टी सूत्रों के अनुसार, सीट बंटवारे से लेकर उम्मीदवार चयन तक, हर चीज़ में संजय की सलाह को प्राथमिकता दी गई। कई लोगों का मानना है कि उनके सुझावों के आधार पर कई टिकट बदले गए या रोक दिए गए, जिससे पार्टी में अंदरूनी असंतोष पैदा हुआ। संजय चुनावी आंकड़ों, उम्मीदवार के स्थानीय प्रभाव, सोशल मीडिया छवि और संभावित जीत की संभावनाओं का विश्लेषण करते हैं और तेजस्वी को सुझाव देते हैं। यही वजह है कि टिकट वितरण में उन्हें निर्णायक कारक माना जाता था। कई नेताओं ने तो यहाँ तक कहा कि उनके टिकट इसलिए काटे गए क्योंकि

