Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार में हो रहे वोटरों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को लेकर एक बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि अब आधार कार्ड को 12वें दस्तावेज़ के तौर पर स्वीकार किया जाए, जिसे मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए पहचान पत्र के तौर पर पेश किया जा सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच में सुनवाई:
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने मामले की सुनवाई की। सुनवाई करते हुए कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि वह अपने अधिकारियों को आधार को पहचान पत्र के तौर पर स्वीकार करने के निर्देश जारी करे। अधिकारियों को आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता की जाँच करने का अधिकार होगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि आधार को पहचान पत्र के तौर पर स्वीकार किया जाएगा।
राजद की ओर से कपिल सिब्बल ने पेश कीं दलीलें :
राजद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) में अपना पक्ष रखा। कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों के बावजूद, चुनाव पंजीकरण अधिकारी और बीएलओ आधार को एकमात्र दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे हैं। सिब्बल ने उन मतदाताओं के हलफनामे भी अदालत में दाखिल किए जिनका आधार स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘आधार सबसे सार्वभौमिक दस्तावेज़ है। अगर इसे स्वीकार नहीं किया जाता है, तो वे किस तरह की समावेशन प्रक्रिया अपना रहे हैं? वे गरीबों को बाहर करना चाहते हैं।’
चुनाव आयोग की ओर से राकेश द्विवेदी ने रखा अपना पक्ष :
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने चुनाव आयोग की ओर से कहा कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन इसे पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आयोग ने इस संबंध में विज्ञापन भी जारी किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) के इस पर न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि आयोग की सूची में शामिल 11 दस्तावेज़ों में से केवल पासपोर्ट और जन्म प्रमाण पत्र ही नागरिकता के प्रमाण हैं, किसी अन्य दस्तावेज़ से नागरिकता साबित नहीं होती।

