Supreme Court on SIR : बिहार में चल रहे मतदाता सूची संशोधन (SIR) के मुद्दे पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ मतदाता सूची के गहन संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और शादान फरासत बहस कर रहे हैं। सिब्बल ने चुनाव आयोग की इस मुहिम की प्रक्रिया पर सवाल उठाए। इस पर आयोग ने कहा कि इतनी बड़ी प्रक्रिया में कुछ खामियाँ रह जाती हैं, इसलिए मसौदा मतदाता सूची पर दावे और आपत्तियाँ मांगी गई हैं। साथ ही, शीर्ष अदालत ने SIR में आधार और राशन कार्ड को शामिल न करने के चुनाव आयोग के कदम को सही ठहराया है।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि SIR के तहत बिहार में 65 लाख लोगों को मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया। वकील कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि एक छोटे से निर्वाचन क्षेत्र में 12 लोग ऐसे हैं जिन्हें मृत दिखाया गया है, जबकि वे जीवित हैं। सूची में कुछ मृत लोगों के नाम हैं। बीएलओ ने कोई काम नहीं किया है।
इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाता सूची का मसौदा अभी जारी किया गया है। इस पर आपत्तियाँ और सुधार के लिए आवेदन मांगे गए हैं। इतनी बड़ी प्रक्रिया में कुछ गलतियाँ होना स्वाभाविक है।
सुप्रीम कोर्ट का आयोग से सवाल :
इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के वकील से पूछा कि कितने लोगों की पहचान मृत के रूप में हुई है। चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि इतनी बड़ी प्रक्रिया में कुछ खामियाँ तो होंगी ही।
अगर नए मतदाता के फॉर्म में आधार कार्ड मान्य है, तो एसआईआर में क्यों नहीं?
याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने अदालत को बताया कि नए मतदाता को मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वाने के लिए फॉर्म 6 भरना होता है। उस फॉर्म में जन्मतिथि के लिए दस्तावेज़ी साक्ष्य की सूची में आधार कार्ड को दूसरे स्थान पर रखा गया है। लेकिन चुनाव आयोग मतदाता सूची संशोधन (एसआईआर) में आधार को स्वीकार नहीं कर रहा है।
सिब्बल ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति कहता है कि मैं भारत का नागरिक हूँ, तो इसे साबित करने की ज़िम्मेदारी चुनाव आयोग की है। एक नागरिक केवल सूचना दे सकता है, अगर किसी नागरिक के भारतीय होने पर संदेह है, तो सरकार को इसे साबित करना होगा।
‘चुनाव आयोग द्वारा मांगे गए दस्तावेज़ सभी के पास नहीं हैं’ – कपिल सिब्बल :
भोजन अवकाश के बाद सुप्रीम कोर्ट में फिर से शुरू हुई सुनवाई के दौरान, वकील कपिल सिब्बल ने मतदाता सूची संशोधन की पूरी प्रक्रिया को क़ानून के ख़िलाफ़ बताया। उन्होंने मतगणना प्रपत्र का ज़िक्र करते हुए कहा कि चुनाव आयोग को ऐसा करने का अधिकार नहीं है। बिहार के लोगों के पास वे दस्तावेज़ नहीं हैं जो आयोग ने संशोधन के दौरान माँगे हैं।
इस पर जस्टिस कांत ने कहा कि बिहार राज्य भारत का हिस्सा है। अगर ये दस्तावेज बिहार के लोगों के पास नहीं होंगे, तो वे किसी दूसरे राज्य के लोगों के पास भी नहीं होंगे।
इस पर सिब्बल ने कहा कि अगर सिर्फ़ जन्म प्रमाण पत्र की बात करें, तो सिर्फ़ 3.06 प्रतिशत लोगों के पास ही यह दस्तावेज़ हैं। इसी प्रकार मात्र 2.7 प्रतिशत लोगों के पास पासपोर्ट है। वहीं केवल 14.71 प्रतिशत लोगों के पास ही मैट्रिकुलेशन का प्रमाणपत्र है। इसके बाद बचे सभी लोगों के पास पास आधार और राशन कार्ड ही पहचान का प्रमाणपत्र है। लेकिन चुनाव आयोग इन दोनों डाक्यूमेंट्स को SIR में शामिल नहीं किया है।
आधार और राशन कार्ड पर चुनाव आयोग को SC से मिली राहत :
सर्वोच्च न्यायालय ने मतदाता सूची पुनरीक्षण में आधार और राशन कार्ड को शामिल न करने के चुनाव आयोग के तर्क को सही ठहराया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता की दलील सुनते हुए कहा कि आयोग का यह कहना सही है कि निर्णायक (ठोस) साक्ष्य के स्तर पर इन दस्तावेज़ों को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
SIR में पहले कभी नहीं मांगे गए थे फॉर्म और दस्तावेज़ – योगेंद्र यादव
SIR मामले पर चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि वर्ष 2003 में बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण नहीं, बल्कि गहन पुनरीक्षण (IR) किया गया था। हालाँकि, दोनों में कोई खास अंतर नहीं है। लेकिन, इस देश के इतिहास में मतदाता सूची के जितने भी पुनरीक्षण हुए हैं, उनमें कभी कोई फॉर्म जमा करने के लिए नहीं कहा गया। मतदाताओं से कभी दस्तावेज़ नहीं मांगे गए। 2003 में मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान चुनाव कर्मचारी बिना किसी फॉर्म या दस्तावेज़ के घर-घर जाकर सत्यापन करते थे। उन्होंने तर्क दिया कि गहन पुनरीक्षण एक अच्छी पहल है। लेकिन विशेष गहन पुनरीक्षण में दो और चीज़ें जोड़ दी गईं – फॉर्म भरने की ज़रूरत और नागरिकता का प्रमाण – जो कि ग़ैरक़ानूनी है।
यादव ने वर्तमान में जारी एसआईआर पर चुनाव आयोग की मंशा पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में यह पहली बार है, जब ड्राफ्ट मतदाता सूची में कोई नया मतदाता नहीं जोड़ा गया है। बल्कि, 65 लाख मतदाता हटा दिए गए हैं। जबकि पिछले मतदाता सूची पुनरीक्षण में भी नए मतदाता जोड़े गए थे।

