Bihar Election Survey 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज़ हो गई हैं। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने की उम्मीद है। नीतीश कुमार सरकार का कार्यकाल 22 नवंबर को समाप्त हो रहा है, इसलिए चुनाव उससे पहले पूरे होने ज़रूरी हैं। राज्य की सभी 243 सीटों पर मुकाबला बेहद रोमांचक होने की उम्मीद है। राजद, जदयू, भाजपा और कांग्रेस राज्य की राजनीति में मुख्य खिलाड़ी हैं, जबकि लोजपा, रालोसपा, वीआईपी और जन सुराज जैसी पार्टियाँ भी खेल बिगाड़ सकती हैं।
इस संदर्भ में, इस बात को लेकर कई दावे और अटकलें लगाई जा रही हैं कि कौन जीतेगा। इस बीच, लोकपोल के ताज़ा सर्वेक्षण ने बिहार की राजनीति में एक नई हलचल मचा दी है। आँकड़े साफ़ तौर पर बताते हैं कि मुक़ाबला बेहद कड़ा होगा और सत्ता पर कब्ज़ा करने का फ़ैसला आख़िरी वोट तक जा सकता है।
तीन हफ़्ते के ज़मीनी शोध, व्यापक फ़ील्डवर्क और बूथ स्तर पर जनमत संग्रह के बाद, लोकपोल ने 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों के लिए अब तक का अपना सबसे लोकप्रिय और व्यापक सर्वेक्षण जारी किया है।
एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर, कौन कितनी सीटें जीतेगा?
लोकपोल सर्वेक्षण के अनुसार, इस चुनाव में एनडीए और महागठबंधन (जीजीबी) के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है। सीटों के अनुमानों के अनुसार, एनडीए 105 से 114 सीटें जीत सकता है, जबकि महागठबंधन 118 से 126 सीटें जीत सकता है। अन्य दलों को 2 से 5 सीटें मिलने का अनुमान है। इसका मतलब है कि प्रशांत किशोर कोई एक्स-फैक्टर नहीं होंगे।
लोकपोल सर्वे के नतीजे :
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एनडीए को 105 से 114 सीटें मिलने का अनुमान
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महागठबंधन (MGB) को 118 से 126 सीटों पर बढ़त मिलने की संभावना
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अन्य दलों के खाते में 2 से 5 सीटें जा सकती हैं।

किस दल को कितना वोट शेयर मिलेगा?
वोट शेयर के आधार पर, एनडीए को 38% से 41% वोट मिलने का अनुमान है, जबकि महागठबंधन को 39% से 42% वोट मिलने का अनुमान है। इसका मतलब है कि दोनों गठबंधनों के बीच बहुत कम अंतर है।
बिहार चुनाव को प्रभावित करेंगे ये फैक्टर :
1️⃣ युवाओं और नए मतदाताओं का झुकाव तेजस्वी यादव की ओर :
सर्वेक्षण की सबसे खास बात युवा और पहली बार वोट देने वालों के बीच स्पष्ट रुझान है। बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दे युवा मतदाताओं को महागठबंधन की ओर खींच रहे हैं। तेजस्वी यादव का आरक्षण कार्ड विशेष रूप से ओबीसी और ईबीसी मतदाताओं को आकर्षित कर रहा है।
2️⃣ नीतीश कुमार के खिलाफ बढ़ती नाराजगी :
इस बार सत्ता विरोधी लहर साफ दिखाई दे रही है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि प्रभावित हो रही है। उनका लंबा कार्यकाल, बिगड़ती कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार के आरोप और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं ने उनकी लोकप्रियता को कम किया है। कई ईबीसी समुदाय, जो कभी नीतीश कुमार के लिए एक मजबूत वोट बैंक थे, धीरे-धीरे एनडीए से दूर हो रहे हैं।
3️⃣ जातिगत समीकरणों का प्रभाव :
जातिगत समीकरण हमेशा से बिहार चुनाव का एक महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं। इस बार मुस्लिम और यादव मतदाता महागठबंधन की ओर मजबूती से झुकते दिख रहे हैं। जाति जनगणना के बाद कांग्रेस को अनुसूचित जाति और अति पिछड़ा वर्ग (जैसे चमार, मल्लाह और मुसहर) समुदायों के बीच भी समर्थन बढ़ता दिख रहा है।
इस बीच, भाजपा का उच्च जाति और बनिया वोट बैंक के साथ मज़बूत संबंध बना हुआ है। हालाँकि, जन सुराज पार्टी का प्रभाव उच्च जाति के वोटों को, खासकर कुछ इलाकों में, विभाजित कर रहा है।
4️⃣ महिलाओं और योजनाओं का प्रभाव :
इस बार महिलाओं का वोट बैंक महागठबंधन की ओर झुकता दिख रहा है। मुफ़्त बिजली और “मैं-बहन मान” जैसी योजनाओं ने महिलाओं के बीच अपनी पैठ बना ली है। महिला मतदाताओं के लिए प्रधानमंत्री मोदी की अपील अब पहले जैसी मज़बूत नहीं रही।
5️⃣ राहुल गांधी की बदली हुई छवि :
दिलचस्प बात यह है कि राहुल गांधी की छवि में भी सुधार हुआ है। उनकी “मतदाता अधिकार यात्रा” ने उन्हें जन मुद्दों पर केंद्रित एक गंभीर नेता के रूप में प्रस्तुत किया है। सर्वेक्षण बताते हैं कि राहुल की यह सक्रियता महागठबंधन के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।
6️⃣ बसपा और अन्य दलों की स्थिति
उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे इलाकों में बसपा का प्रभाव लगातार कम होता जा रहा है, जिसका फायदा महागठबंधन को मिलता दिख रहा है। छोटी पार्टियाँ कुछ सीटें जीत सकती हैं, लेकिन व्यापक परिदृश्य में उनका प्रभाव सीमित ही रहेगा।
सर्वेक्षणों के नतीजे बताते हैं कि बिहार में यह चुनाव ऐतिहासिक रूप से कांटे का हो सकता है। महागठबंधन को थोड़ी बढ़त मिलती दिख रही है, एक तरफ नीतीश कुमार का अनुभव और ताकत, तो दूसरी तरफ तेजस्वी यादव की युवा ऊर्जा और सामाजिक एकजुटता। अब देखना यह है कि जनता किस पर भरोसा करती है और बिहार में सत्ता की चाबी किसके हाथ में होती है।

