Chhath Puja Arghya Timing 2025 : छठ पूजा सूर्य पूजा और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक प्रमुख त्योहार है। छठ पूजा का पहला दिन नहाय-खाय, दूसरा दिन खरना, तीसरा दिन डूबते सूर्य (अस्ताचलगामी सूर्य) को अर्घ्य देने का होता है, और चौथा दिन उगते सूर्य (ऊषा अर्घ्य) को अर्घ्य देने का होता है, जो 36 घंटे के निर्जल व्रत के पूरा होने का प्रतीक है। छठ पूजा छठी मैया, सूर्यदेव (सूर्य भगवान) और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का त्योहार है, और इस चार दिवसीय पूजा का हर चरण प्रकृति, विज्ञान और आस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है। भक्त सख्त रीति-रिवाजों का पालन करते हैं, अपने परिवारों और बच्चों की खुशी, समृद्धि, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। छठ पूजा में, सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। केवल छठ पूजा में ही डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। साथ ही, छठ पूजा के आखिरी दिन उगते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। आइए जानते हैं छठ पूजा के शाम और सुबह के अर्घ्य का सही समय:
छठ पूजा का तीसरा दिन – 27 अक्टूबर, सोमवार
छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन – 28 अक्टूबर, मंगलवार
छठ पूजा के तीसरे दिन, भक्त शाम का अर्घ्य देते हैं, यानी डूबते सूर्य को जल अर्पित करते हैं। यह अर्घ्य पूरे दिन ऊर्जा और जीवन प्रदान करने के लिए सूर्य भगवान के प्रति आभार का प्रतीक है। जब हम सूर्यास्त के समय अर्घ्य देते हैं, तो हम अपने जीवन के अंधेरे समय में भी विश्वास और धैर्य बनाए रखने का संकल्प लेते हैं। डूबता सूरज यह संदेश देता है कि हर अंत के बाद एक नई शुरुआत होती है। इसलिए, संध्या अर्घ्य यह सिखाता है कि जीवन की हर चुनौती को शांति और भक्ति के साथ स्वीकार करना चाहिए।
संध्या अर्घ्य का शुभ समय – शाम 5:40 बजे (27 अक्टूबर, 2025)
उगते सूरज को अर्घ्य देने का महत्व (ऊषा अर्घ्य)
छठ के चौथे दिन, सुबह भक्त उगते सूरज को अर्घ्य देते हैं, जो 36 घंटे के निर्जल व्रत के खत्म होने का प्रतीक है। यह नई शुरुआत, आशा और पॉजिटिविटी का प्रतीक है। भक्तों का मानना है कि उगते सूरज को अर्घ्य देने से बीमारियों से मुक्ति, लंबी उम्र और समृद्धि मिलती है। उगता सूरज हमारे जीवन में ऊर्जा और सफलता का प्रतीक है। जब सूरज की पहली किरण भक्त पर पड़ती है, तो उसे नई ज़िंदगी का एहसास होता है।
ऊषा अर्घ्य का शुभ समय – सुबह 6:30 बजे (28 अक्टूबर, 2025)
छठ पूजा के दौरान अर्घ्य देने की विधि:
संध्या अर्घ्य की विधि:
- भक्त को नदी, तालाब या घाट के किनारे पहुंचना चाहिए।
- अपने हाथ में गंगाजल या शुद्ध जल से भरा पीतल का बर्तन या कलश लें।
- एक टोकरी (सूप) को फल, ठेकुआ, नारियल, गन्ना और दीये से सजाएं।
- सूरज डूबने से ठीक पहले घाट पर सूरज की दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाएं।
- पानी चढ़ाते समय सूर्य देव से प्रार्थना करें – ओम सूर्याय नमः, ओम आदित्याय नमः
- पूरे परिवार की भलाई के लिए प्रार्थना करें।
- एक दीया जलाएं और उसे पानी में बहा दें।
ऊषा अर्घ्य की विधि :
- चौथे दिन, सुबह होने से पहले घाट पर पहुंचें।
- उगते सूरज का इंतज़ार करें और उसी टोकरी (सूप) को फिर से सजाएं।
- जैसे ही सूरज की पहली किरण दिखे, पानी चढ़ाएं।
- सूर्य देव का ध्यान करते हुए यह संकल्प लें – सर्वरोग निवारणम् च, आयुष्यमारोग्यं प्रददातु सूर्यः
- अर्घ्य देने के बाद, भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, और व्रत पूरा हो जाता है।

